Thursday, October 2, 2025

एक दीये की रोशनी

 


एक दीये की रोशनी

सावित्री देवी ने आंगन में रखे मिट्टी के दीयों को देखा। कुल बाईस दीये थे, हर साल की तरह। लेकिन इस बार उन दीयों में तेल डालने से पहले ही उनका मन उदास था। इस साल घर का हर कोना उन्हें डस रहा था।

हर दिवाली, जब वह पहला दीया जलाती थीं, तो उनके पोते आर्यन की शरारत भरी हँसी पूरे घर में गूँज उठती थी। आर्यन हमेशा ज़िद करता था कि पहला दीया वह जलाएगा, और दूसरा वह जो उसकी दादी की सूनी चौखट को रोशन करेगा।

"दादी, चाहे कहीं भी रहूँ, मैं दिवाली पर तुम्हारे लिए एक दीया ज़रूर जलाऊँगा। वादा!"

तीन साल हो गए थे जब आर्यन पढ़ाई के लिए विदेश गया था। पिछले दो सालों से वह आ नहीं पाया था। आज, अमावस की इस शाम को, रोशनी के इस सबसे बड़े त्यौहार पर, सावित्री देवी को लग रहा था जैसे उनके घर में ही नहीं, उनके दिल में भी अँधेरा है।

उन्होंने काँपते हाथों से पहला दीया उठाया। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। बाहर दरवाज़े पर पड़ोस के शर्मा जी खड़े थे, जिनके हाथ में एक छोटा-सा पैकेट था।

"सावित्री जी, आर्यन ने भेजा है। कहा है कि आपकी पूजा से ठीक पहले दे दूँ।"

सावित्री देवी ने पैकेट खोला। अंदर एक महँगा विदेशी चॉकलेट नहीं, बल्कि एक साधारण-सा कार्ड और एक छोटा-सा USB ड्राइव था।

कार्ड पर आर्यन की चिरपरिचित लिखावट थी: दादी, दरवाज़ा बंद करके, इसे अपनी टीवी पर लगाओ।

सावित्री देवी ने जैसे-तैसे वह USB टीवी में लगाई। स्क्रीन पर अचानक उनके घर का पुराना आंगन जगमगा उठा। यह पिछले साल की दिवाली का वीडियो था। आर्यन आतिशबाजी कर रहा था, उनके पिताजी आर्यन को मिठाई खिला रहे थे, और वह खुद हँसते हुए हर कोने में दीये रख रही थीं।

लेकिन फिर, वीडियो रुका। स्क्रीन पर आर्यन का चेहरा दिखाई दिया, वह भी एक छोटे से कमरे में, उसके पीछे एक टेबल पर बस एक जलता हुआ छोटा-सा दीया था।

आर्यन की आवाज़ आई, जो टेप नहीं, बल्कि लाइव वीडियो कॉल थी!

"नमस्ते दादी! मुझे पता है कि आप अभी अकेली होंगी। मैं दूर हूँ, लेकिन अपना वादा भूला नहीं। देखो, मैंने भी एक दीया जलाया है। यह रोशनी सिर्फ़ यहाँ नहीं, वहाँ आपके घर तक पहुँच रही है, हमारे दिल के तार से। और पता है, मैं इस दीये में वही घी इस्तेमाल कर रहा हूँ जो आपने मेरी पैकिंग में दिया था।"

सावित्री देवी की आँखों से आँसू बह निकले। यह आँसू दुःख के नहीं, बल्कि उस अटूट प्यार और जुड़ाव के थे, जो सात समंदर पार भी फीका नहीं पड़ा।

उन्होंने अपने आँसू पोंछे, और अपने मन में कहा, "हाँ, मेरे लाल। दीयों का त्योहार केवल तेल या बत्ती से नहीं जलता। यह त्योहार उम्मीद से जलता है, यह प्यार से जगमगाता है।"

सावित्री देवी उठीं। उन्होंने जल्दी से बाईस दीयों में तेल डाला, उन्हें जलाया, और उस जलते हुए दीये को अपनी टीवी के ठीक नीचे रख दिया जहाँ स्क्रीन पर आर्यन का जलता हुआ दीया दिख रहा था।

अब दो दीये नहीं, बल्कि दो दिलों की रोशनी मिलकर एक हो गई थी। इस बार उनकी दिवाली पर घर सूना नहीं, बल्कि बेटे के दूर होने के बावजूद, ममता के उजालों से भरा हुआ था।

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